(हास्य + बॉलीवुड व्यंग्य विशेष)
आज देशभर के सिनेमाघरों के बाहर, लाल रुमाल, काली बनियान, और लोहे की छड़ पकड़े सैकड़ों गुंडों ने धरना दे दिया है।
वजह? अजी वजह वही पुरानी और दर्दनाक—हीरो ने फिर से अकेले ही 25-30 गुंडों की “धुलाई” कर दी।

गुंडा यूनियन के अध्यक्ष “मरेला हथौड़ा” ने बयान जारी किया: “कब तक सहेंगे हम? हमारा काम गुंडागिरी करना है, न कि मार खाना। अब बहुत हो गया… स्ट्राइक पर जा रहे हैं।”
हीरो का गुनाह क्या था?
बॉलीवुड की नई फिल्म “जाट” में हीरो ने – अकेले, बिना हथियार सिर्फ अपने हाथों से – 50 गुंडों को धूल भरे गद्दे की तरह की तरह कुटाई कर डाली।

गुंडा यूनियन ने गिनती की है:
- 12 गुंडों को उछाल कर होटल की दीवोरों पर कैलेण्डर की तरह लटका दिया।
- 9 को हवा में मार के जमीन पर रगड़ा।
- 9 को तो सीधा बिजली के खम्भों पर दे मारा।
- 15 लोगों को तो सिर्फ थप्पड़ ही थप्पड़ रसीद किये हैं।
- 5 लोगों को तो पंखा उकाड़कर मारा है।
गुंडों की यूनियन की मांग क्या है?
गुंडा यूनियन की मांगें बिल्कुल सीधी हैं:
- फिल्मों में मार खाते वक्त कैमरा क्लोज़अप दे ताकि उनकी एक्टिंग दिख सके।
- हीरो एक बार में 5 से ज़्यादा गुंडों को ना मारे।
- गुंडों को भी “फिल्म की कहानी” में एक Flash Back सीन मिले। जैसे: “मैं गुंडा इसलिए बना क्योंकि मेरी चाय की दुकान जल गई थी।” या “किसी ने चोरी का इल्जाम लगाकर गांव से निकाल दिया था।
- एक गाना भी हो, जिसमें हिरोइन के साथ कोई गाना मिल सके यदि यह नहीं मिलता तो कम से कम कोई सोलो गाने में लिपसिंग मिल जाये।
गुंडों का दर्द: इंटरव्यू से
हमने कुछ “वरिष्ठ गुंडों” से बात की:
1- हिटलर बटला
“हम महीनों जिम में मेहनत करते हैं, प्रोटीन लेते हैं, और फिल्म में हीरो आता है, एक झापड़ से उड़ा देता है। हमारी इज़्ज़त का क्या?”
2- मरेला हथौड़ा
“एक सीन में मैं हीरो के पीछे खड़ा था – बस खड़ा था। फिर मुझे कैमरा ने धुंधला दिखाया, और हीरो ने मुझे बाइक से मार दिया।साला एक फाइट भी मारने को नहीं दिया। “
3-पगला काका (रिटायर गुंडा)
“पहले जमाना था… दो-दो सीन मिलते थे, डायलॉग भी होता था – ‘अब तो मैं रिटायर हो गया हूं पर जब मैं फिल्म देखता हूं तो आजकल के गुन्डों की फिल्मों में हालत देखकर बहुत रोना आता है।”
गुंडा यूनियन का मेनिफेस्टो
“गुंडा इज़ फॉर एवर” योजना: हर गुंडे को कम से कम एक बार तो हीरों को पीटने को मिलें।
“गुंडा बचाओ, कला बढ़ाओ” अभियान।
“धुलाई सीमित करो” कानून पास हो।
रिटायर होते गुंडों को “जब भी किसी फिल्म में मौका मिले , तो हीरो उसको बिल्कुल भी ना छू सके”।
हीरो से शांति वार्ता
हीरो की ओर से एक मीटिंग बुलाई गई। वहाँ पहुंचे यूनियन नेता ने मांग रखी:
“कम से कम कभी-कभी हार भी जाओ, ताकि हमें लगे कि हमारी छड़ी में भी कुछ दम है।”
हीरो (शर्ट फाड़ते हुए): “हीरो हारता नहीं, सिर्फ विलेन की स्क्रीन टाइम बढ़ाता है।”
फिर वही हुआ – गुंडा नंबर 3 को टेबल से उठाकर दीवार पर दे मारा गया।

अब क्या करेंगे गुंडे?
गुंडों ने अब नया रास्ता चुना है:
अब जब हीरो बात ही नहीं मान रहा है, तो गुन्डा यूनियन ने तय किया है कि फिल्में तो करेगे पर हीरो से जब भी लड़ाई होगी ,तो एक साथ लड़ेगे हीरे से, अफनी पिटाई की बारी का इंतजार नहीं करेगें। क्योंकि एकता में ही बल है।
गुन्डा यूनियन के अध्यक्ष पोपला बटलर ने कहा “हमें सिर्फ मार खाने वाले किरदार न समझो। हम भी इंसान हैं, हमारी भी भावनाएं हैं। अगर हमें स्क्रीन पर प्यार से दिखाया जाए, तो कौन कहता है कि गुंडा दिल नहीं रखता?”
यह सब सुनकर अब हीरो डरा सहमा सा महसूस कर रहा है ।