Comedy King with Serious Dialogue यह एक ऐसा दृश्य है जो कि हम फिल्मों में देखते हैं। बॉलीवुड हो, भोजपुरी सिनेमा हो, दक्षिण भारतीय सिनेमा हो, मराठी सिनेमा हो या बंगाल का सिनेमा हो, जब भी अदालत का दृश्य आता है, दर्शकों को पता चल जाता है कि अब या तो जबरदस्त ड्रामा होगा या फिर ऐसा मज़ाक कि पेट में बल पड़ जाएं।
लेकिन अगर हम एक खास किरदार की बात करें, जो हर अदालत के दृश्य में अनोखा ग्लैमर जोड़ देता है, तो वह है – फिल्म का जज

फिल्मी जज की पहचान
भारतीय फिल्मों में जज कोई साधारण इंसान नहीं होता। वह एक ऐसी हस्ती होती है जो काला कोट पहनते ही न्याय का अवतार बन जाती है। इनके हाथ में हमेशा एक हथौड़ा (गावेल) होता है, जिसे वे गुस्से में ठोककर कहते हैं – “ऑर्डर….ऑर्डर”

अगर फिल्म पुरानी हो तो जज साहब के पास गोल्डन रिम का चश्मा, सफेद बाल और भारी आवाज़ में बोलने का हुनर ज़रूर होगा।

लेकिन अगर नई फिल्मों की बात करें, तो अब जज साहब मॉडर्न हो गए हैं – महंगे सूट पहनते हैं, चेहरे पर हल्की दाढ़ी और उनकी अदालत एकदम हाई-फाई लगती है।
जज साहब के डायलॉग्स का जादू
भारतीय फिल्मों में जज का किरदार हो और कुछ दमदार डायलॉग्स न हों, ये कैसे हो सकता है? यहाँ कुछ अमर डायलॉग्स जो हर फिल्मी जज ने ज़रूर बोले होंगे:
- “अदालत में सबूत पेश किया जाए!” – (यहाँ सबूत का मतलब हीरो का कोई वीडियो क्लिप या चिट्ठी होती है, जिसे देख कर जज साहब गहरी सांस लेते हैं।)
- “ये अदालत किसी की निजी भावनाओं से नहीं, बल्कि सबूतों और गवाहों से चलती है!” – (लेकिन अंत में फैसला हीरो की सच्चाई देखकर ही दिया जाता है।)
- “अगर अगले 24 घंटे में सबूत नहीं मिले तो ये केस खारिज कर दिया जाएगा!” – (मतलब हीरो के पास पूरे देश में दौड़-भाग कर सबूत लाने का टास्क मिल गया।)
- “मेरा फैसला अंतिम है, इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती!” – (ऐसे डायलॉग सुनकर भारत के असली जज भी हंस पड़ें!)

फिल्मी जज की सुपरपावर
फिल्मों के जज आम जजों से बिल्कुल अलग होते हैं। उनकी कुछ खास शक्तियाँ होती हैं, जिनमें शामिल हैं:
- हर केस को 10 मिनट में सुलझा देना – असली दुनिया में एक केस सालों तक चलता है, लेकिन फिल्मी जज एक ही सुनवाई में फैसला सुना देते हैं।
- सबूतों को तुरंत पहचान लेना – एक चिट्ठी देखकर या किसी वीडियो क्लिप को देख कर तुरंत समझ जाते हैं कि असली गुनहगार कौन है।
- खलनायक को फौरन पकड़वाना – “अदालत के आदेशानुसार पुलिस तुरंत मुजरिम को गिरफ्तार करे!” – बस, खलनायक को पुलिस पकड़ ही लेती है।
- हीरो की बातों पर भरोसा करना – अगर हीरो कोर्ट में घुसकर अचानक कहे “माई लॉर्ड, मुझे बस पांच मिनट दीजिए!”, तो जज साहब तुरंत सिर हिलाकर सहमति दे देते हैं।

जज का फाइनल मोमेंट: हथौड़ा पटक कर दिया गया फैसला
जब फिल्म अपने क्लाइमैक्स पर होती है, तो जज साहब कोर्ट रूम में सस्पेंस बनाकर रखते हैं। पहले गहरी सांस लेंगे, फिर पूरे कोर्ट को गंभीर नज़रों से देखेंगे और फिर भारी आवाज़ में बोलेंगे:
“सभी गवाहों और सबूतों को देखने के बाद, यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि…” (3 सेकंड का लंबा ड्रामेटिक पॉज़) “मुजरिम दोषी है!”
इसके बाद हथौड़ा टेबल पर पटकते ही पूरा कोर्ट शांत हो जाता है और फैसले के बाद कोर्ट में बैठे लोग एकदूसरे को देख कर बात करने लगते हैं।
कोर्टरूम ड्रामा फिल्मों में जज का किरदार हमेशा से यादगार रहा है। यह किरदार ड्रामा, इमोशन और कॉमेडी का जबरदस्त मिश्रण होता है। अगर कभी हिंदी फिल्मों के जजों की एक अलग श्रेणी बनाई जाए, तो शायद इन्हें “ओवरएक्टिंग के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड” भी मिल जाए।
तो अगली बार जब आप किसी बॉलीवुड फिल्म में जज को “ऑर्डर! ऑर्डर!” चिल्लाते देखें, तो हंसते-हंसते यह सोचिए – काश, असली दुनिया में भी हर केस का फैसला 10 मिनट में हो सकता।
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