जब बॉर्डर लगी थी- हर सिनेमा हॉल बना था भारत माता का मंदिर।

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By Pradeep

1997 में रिलीज़ हुई फिल्म बॉर्डर ने देशभक्ति, जज़्बात और ज़बरदस्त अभिनय से भारतीय सिनेमा में इतिहास रच दिया।

जानिए कैसे इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों में देश प्रेम की लहर दौड़ा दी। जब बॉर्डर फिल्म ने मचाया तहलका – देशभक्ति की मिसाल बनी 1997 की सुपरहिट फिल्म।

साल 1997, तारीख 13 जून। यह वही दिन था जब भारतीय सिनेमा में एक ऐसी फिल्म रिलीज़ हुई जिसने न केवल बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड बनाए, बल्कि हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की चिंगारी भी भड़का दी।

जे. पी. दत्ता की फिल्म बॉर्डर (Border) महज एक युद्ध फिल्म नहीं थी, यह एक भावनाओं का समुंदर थी – जिसमें था सैनिकों का बलिदान, परिवारों का दर्द और देश के लिए जान लुटाने का जुनून।

बॉर्डर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित थी, जिसमें लोंगेवाला पोस्ट की लड़ाई को दिखाया गया था। यह लड़ाई भारत की सबसे गौरवपूर्ण सैन्य जीतों में गिनी जाती है। फिल्म ने इस ऐतिहासिक युद्ध को इतना भावुक और रियल अंदाज़ में पेश किया कि दर्शकों की आंखें नम हो गईं।

स्टार कास्ट – जब हर एक किरदार यादगार बन गया

सनी देओल (मेजर कुलदीप सिंह) :

“जिन्दगी और मौत वाहेगुरु के हाथ में है…… और मेरा वाहेगुरु दुश्मन के साथ नहीं,……मेरे साथ है….”

सुनील शेट्टी (भैरों सिंह, BSF जवान):

“हम तो किसी दूसरे की धरती पर नज़र भी नहीं डालते…. लेकिन इतने नालायक बच्चे भी नहीं हैं कि कोई हमारी धरती मां पर नज़र डाले और हम देखते रहें….”

अक्षय खन्ना (लेफ्टिनेंट धरमवीर सिंह):

“आपने कहा था ना सर…अपने पिताजी को याद करो…मेजर वीरभान को याद करो…वो आ गये हैं सर..मेरे पिताजी लेने आ गये…”

सुदेश बेरी (सुबेदार मथुरादास):

“भैरो सिंह, यह धरती तो तुम्हारी मां है, तो मेरी भी मां है…… हो सके तो मेरे बच्चे की मां को संदेश पहुंचा देना….. कहना मैं तेरा गुनाहगार हूं…. इस जन्म में धरती मां का कर्ज़ चुका कर जा रहा हूं अगले जन्म में उसका कर्ज़ चुका दुंगा….”

पुनीत इस्सर (आर्टिलरी यूनिट अफसर रतन सिंह):

“दो चार क्या सर….. दो चार सो होण दयो, रतन सिंह के होदया आपको लोड करने की कोई जरुरत नी है”

कुलभूषण खरबंदा(भागीराम, मास्टर कुक)

“अरे उस करछी का ही कमाल है तू खा-खा के इतना तगड़ा हो गया,……अब तू बंदूक का कमाल देख। दो चार दुश्मन तो इसके नाम हैं ही….”

जब गाने बन गए जज़्बात

इस फिल्म की जान थे इसके गाने। अनु मलिक के संगीत और जावेद अख्तर के बोलों ने हर गीत को आइकोनिक बना दिया।

  • “संदेसे आते हैं” – एक सैनिक का अपने परिवार से जुड़ाव और दूर रहने का दर्द, ये गाना आज भी हर देशभक्त की प्लेलिस्ट में रहता है।
  • “तो चलूं”, “मेरे दुश्मन मेरे भाई” – हर गाने ने युद्ध की भीषणता, शांति की आशा और इंसानियत का भाव दर्शाया।
  • “हमें जब से मोहब्बत हो गई है”,- इस फिल्म में इस शानदार गीत को कौन भूल सकता है।

जब थिएटर में गूंजे जयकारे

बॉर्डर की रिलीज़ के समय पूरे देश में एक अलग ही माहौल था। लोग सिनेमाघरों में तिरंगा लेकर जाते, “भारत माता की जय” के नारे लगते। कई जगह तो लोग खड़े होकर ताली और सीटियाँ बजाते रहे। कई लोगों की आंखें गीली हो गईं जब उन्होंने जवानों के बलिदान को महसूस किया।

बॉक्स ऑफिस पर सफलता की कहानी

  • बजट: लगभग ₹10 करोड़
  • कमाई: ₹65 करोड़ से ज्यादा (उस दौर में एक बड़ी राशि)
  • स्टेटस: उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक

फिल्म को न केवल कमर्शियल सक्सेस मिली, इस फिल्म को कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक (पुरुष) के लिए, फिल्मफेयर पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

फिल्म का सामाजिक प्रभाव

कई युवाओं ने इस फिल्म को देखने के बाद भारतीय सेना में जाने का निर्णय लिया।

स्कूलों में बॉर्डर को “देशभक्ति फिल्म” के रूप में दिखाया गया।

त्योहारों, राष्ट्रीय पर्वों जैसे 15 अगस्त और 26 जनवरी को आज भी टीवी चैनल इस फिल्म को दिखाते हैं।

बॉर्डर एक ऐसी फिल्म है जो समय के साथ और भी प्रासंगिक होती जा रही है। जब भी देशभक्ति की बात होती है, जब भी हमें भारतीय सैनिकों का जज़्बा याद करना होता है – बॉर्डर एक आइना बनकर सामने आ जाती है।

क्या आपने “बॉर्डर” देखी है? नीचे कमेंट में अपने अनुभव ज़रूर शेयर करें।

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