शहर के हर सिनेमाघर में अगर कोई चीज़ सबसे अधिक मात्रा में पाई जाती है, तो वह है – रोता हुआ आशिक……और हर प्रेम कहानी के अंत में अगर कुछ नहीं बचता, तो वो है – टिशू पेपर, आत्मसम्मान और IQ लेवल।
जब से संयारा फिल्म सिनेमाघरों में लगी है तब से इस फिल्म के रुझान देश के कई सिनेमाघरों से सोेशल मीडिया की मद्द से देखने को मिल रहे हैं। आशिकों और आशिकिनियों की यह जनरेशन सिनेमाघरों में कहर ढहा चुकी है।
यह बात love story film तक ही नहीं रही। ये एक महामारी है, जिसका नाम है – “वो चली गई और मैं टूट गया” सिंड्रोम।
विज्ञान भले ही एलियन नहीं खोज पाया, लेकिन ये टाइप के आशिक और आशिकनी हर नुक्कड़ पर मिल जाएंगे – आँखों में आंसू, जेब में टिकट और दिल में ‘उसका आख़िरी मैसेज’।

ये सब उस रोमांटिक फिल्म से प्रेरित हैं, जिसमें हीरो को देखकर लगता है कि ब्रह्मांड की सारी मुसीबतें उसी के हिस्से में आ गई हैं – और लड़की? वो बस हीरो के सिक्स-पैक देखकर पिघल गई।
सिनेमा हॉल और सिसकियाँ
सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होती है – बारिश, वायलिन और बिचारे आशिक का डायलॉग:
“मैं उसके बिना अधूरा हूं…”
और तभी पास वाली सीट से सुबकने और रोने की आवाज़ आती है और कोई कह रहा होता “भाई, एक टिशू देना…” बहन…उसकी याद आ रही है…..
पाँच मिनट में ऐसा माहौल बनता है, जैसे कोई राष्ट्रीय शोक घोषित हो गया हो। कुछ लोगों की आँखें नम, कुछ का रूमाल गीला और कुछ लड़के जो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आए हैं, वो सोच रहे हैं कि ब्रेकअप करना है या नहीं – कहीं रोने की ट्रेनिंग लेनी पड़े तो?
फिल्म देखकर बाहर आने के बाद “प्यार की परिस्थिति”
फिल्म के असर से जब कोई आशिक बाहर आता है, तो वो दो ही रास्तों पर चलता है – या तो शायर बन जाता है, या सीधा इंस्टाग्राम रील्स में “sad edit” डालता है।
उधर आशिकनी लड़किया भी वोदका पीकर अपने आशिक को याद कर रो रही होती हैं और कोई दिल तोड़ रील्स को अपलोड कर रही होती हैं।

“तेरे बिना अधूरा हूं”, “उसने मुझसे बेवफाई की”, “अब मैं सिर्फ सिगरेट और सन्नाटों का साथी हूं” – ये डायलॉग आजकल सड़क किनारे चाय की दुकानों पर ज्यादा मिलते हैं, स्क्रिप्ट राइटर्स से भी पहले।
एक ज़माना था जब लड़के बैंक, ssc cgl, की नौकरी की तैयारी करते थे, अब वो heartbreak के बाद “वीडियो एडिटिंग” सीख रहे हैं, ताकि अपनी कहानी में Arijit Singh का गाना जोड़ सकें।
प्यार में लॉजिक ही लॉक हो जाता है
अब जरा लड़की का पक्ष भी देखिए। फिल्म में लड़की जब कहती है –
“हमें ब्रेक चाहिए!”
तो लड़का सोचता है – “शायद वह थकी हुई है…”
पर असल में वह कह रही होती है –
“हमें ब्रेक-अप चाहिए!”
फिल्म देख रहे रोते हुये आशिक को जब हकीकत समझ आती है, तब तक वो अपने सारे दोस्त खो चुका होता है, सिनेमा हॉल के वॉलेट में उसके पैसे जा चुके होते हैं, और उसके मोबाइल में सिर्फ कॉलर ट्यून बची होती है – “तुझे भूल जाना जाना, मुमकिन नहीं……तू याद ना आये ऐसा कोई दिन नहीं…”
सोशल मीडिया पर दर्द-ए-दिल बयां करना भी जरुरी
इन रोते आशिकों को असली सुकून मिलता है इंस्टाग्राम पर…….. DP काली होगी, या टुकड़े दिल की फोटो, स्टेटस पे लिखा होगा –
“टूटा हूं मगर बिखरा नहीं…”

और बायो में –
“Once a lover, now a loner.”
अब भाई तू loner है या copy-paste का राजा, ये अलग रिसर्च का विषय है। ऊपर से ये आशिक स्टोरी में लिखते हैं –
“True love is never happy ending…”
जबकि इनका पहला प्यार हुआ था 11वीं में, और तीसरा प्यार कॉलेज के पहले सत्र में ही।
आशिकों को गुमराह करती love Story फिल्में
अब आते हैं असली दोषियों पर – रोमांटिक फिल्में या love story फिल्में
इन फिल्मों ने आशिकों को ऐसा भ्रम दे दिया है कि अगर आप दुखी नहीं हो तो आपको प्यार नहीं हुआ।
मतलब अगर हीरोइन एक बार मुस्कुरा दे तो आशिक समझ बैठता है – “यही तो इशारा था….प्यार होने का..”
सिनेमा दिखाता है –
“प्यार के लिए लड़ो, घर छोड़ो, पापा से लड़ो….
दुनिया से लड़ो..लड़की के पिताजी की सुतईया करो और मौका पड़े तो उसके भाइयों को भी लपेटो.”
असल जिंदगी कहती है –
“EMI भरो, जॉब ढूंढो, और राशन लेकर आओ”
इन आशिकों को दी जाने वाली दोस्तों की सलाह
इन रोने वाले आशिको के दोस्त आपदा में अवसर तलाशने का काम करते हैं। रोते हुये दोस्त के दुख को फेक id बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर देते हैं। और वहां वह दोस्त इंटरनेट पर लोगों की गालियां खा रहा होता है।

ऐसे आशिकों के पास जब उनके सच्चे दोस्त आते हैं, तो कुछ यूँ होता है –
“भाई छोड़ दे यार, और भी लड़कियाँ हैं…”
बहन, वो तो कमीना था, छोड़ दे और लाइफ में आगे बढ़
“नहीं भाई, वो अलग थी…”
समाज की सोच और समाधान
समाज में अब ज़रूरत है “Emotional Detox Center” की। वहाँ जाकर हर आशिक को ये सिखाया जाए कि –
“अगर वो तुम्हें छोड़ गई है, तो समझो उसने तुम्हारा डेटा बचाया है”
हर शहर में एक Breakup Rehabilitation Center होना चाहिए, जहाँ जाकर ये सिखाया जाए कि:
- “हर मुस्कुराहट इश्क नहीं होती”
- “हर डोले वाला लड़का रणवीर सिंह नहीं होता”
- “और हर लड़की ‘गज़ब का attitude’ नहीं, कभी-कभी network problem में होती है”
रोते हुए आशिक और रोमांटिक फिल्में – दोनों ही इस देश की GDP में कुछ नहीं जोड़ते, पर टिशू कंपनी को ज़रूर अमीर बना देते हैं।
अगर किसी दिन आप पान की दुकान पर रोते हुए लड़के को देखें, तो समझ जाइए –
या तो उसका ब्रेकअप हुआ है,
या उसने कोई नई रोमांटिक फिल्म देख ली है।
प्यार करो, मगर थोड़ा सोच समझ कर,वरना रोते-रोते न मूंह बचेगा, न मिर्ज़ा ग़ालिब….
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