आजकल क्रिकेट को एक रोमांचक और तेज़ खेल के रूप में देखा जाता है। खासकर जब बात एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय (वनडे) क्रिकेट की हो, तो दर्शक तेज़ शॉट्स, चौके-छक्के और बड़े स्कोर की उम्मीद करते हैं।
लेकिन क्रिकेट का यह फॉर्मेट केवल आक्रामक बल्लेबाजी तक सीमित नहीं है। कभी-कभी परिस्थितियों या रणनीति के कारण बल्लेबाजों को बेहद धीमी गति से खेलना पड़ता है।
आज हम ऐसे ही एक ऐतिहासिक मौके की बात करेंगे, जब वनडे क्रिकेट में सबसे धीमी बल्लेबाजी दर्ज की गई। यह प्रदर्शन क्रिकेट प्रेमियों के लिए आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
वनडे क्रिकेट और धीमी बल्लेबाजी
वनडे क्रिकेट की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी। इस फॉर्मेट का उद्देश्य टेस्ट क्रिकेट के मुकाबले तेज़ी से खेल दिखाना और दर्शकों को कम समय में रोमांच प्रदान करना था।
लेकिन समय-समय पर हमने ऐसे मौके देखे हैं, जब बल्लेबाजों ने परिस्थितियों के अनुसार बेहद धीमी बल्लेबाजी की।
धीमी बल्लेबाजी आमतौर पर टेस्ट क्रिकेट में अधिक देखने को मिलती है, क्योंकि वहां टिके रहना और लंबी पारियां खेलना महत्वपूर्ण होता है।
लेकिन जब यह वनडे क्रिकेट में होता है, तो यह असामान्य लगता है। वनडे में धीमी बल्लेबाजी के उदाहरण या तो कठिन परिस्थितियों का नतीजा होते हैं, या फिर किसी खास रणनीति का हिस्सा।
दुनिया का सबसे धीमा वनडे पारी का रिकॉर्ड
क्रिकेट के इतिहास में वनडे की सबसे धीमी पारियों में एक नाम जेफ्री बॉयकॉट का आता है। इंग्लैंड के इस महान बल्लेबाज ने 1979 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए मैच में बेहद धीमी पारी खेली।
यह मैच सिडनी में हुआ था और बॉयकॉट ने 137 गेंदों में मात्र 105 रन बनाए। उस समय यह स्ट्राइक रेट आज के मानकों के अनुसार बहुत ही कम था।
हालांकि, सबसे धीमी बल्लेबाजी का रिकॉर्ड केवल स्ट्राइक रेट तक सीमित नहीं है। इसमें वह समय भी शामिल है, जब बल्लेबाज विकेट पर टिके रहने के लिए संघर्ष करते हैं।
क्रिकेट में ऐसे कई मौके आए हैं, जब बल्लेबाजों ने 50 रन बनाने के लिए 100 से अधिक गेंदें खेलीं।
माजिद खान और बॉयकॉट का मुकाबला
1977 में इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच खेले गए एक वनडे मैच में माजिद खान ने 60 गेंदों पर मात्र 15 रन बनाए। उनकी इस धीमी बल्लेबाजी को कई लोग “वनडे क्रिकेट की सबसे धीमी पारी” मानते हैं। उनकी इस धीमी पारी का कारण कठिन पिच और गेंदबाजों का दबदबा था।
इसी प्रकार, जेफ्री बॉयकॉट ने अपने करियर के दौरान कई बार धीमी पारियां खेलीं। उनकी बल्लेबाजी शैली में धैर्य और तकनीकी मजबूती दिखती थी। हालांकि, वनडे क्रिकेट के तेज़ फॉर्मेट में यह शैली दर्शकों के लिए हमेशा दिलचस्प नहीं होती थी।
क्या कहती है रणनीति?
धीमी बल्लेबाजी हमेशा नकारात्मक नहीं होती। क्रिकेट में हर पारी की अपनी परिस्थिति और रणनीति होती है। कई बार टीम को बड़े लक्ष्य का पीछा करने के बजाय विकेट बचाने की जरूरत होती है। ऐसे में बल्लेबाज को धैर्य के साथ खेलना पड़ता है।
उदाहरण के लिए, अगर पिच बल्लेबाजी के लिए कठिन हो या गेंदबाज हावी हों, तो बल्लेबाज को अपनी टीम के लिए टिके रहना जरूरी हो जाता है। ऐसा ही एक मामला 2006 में देखा गया, जब राहुल द्रविड़ ने वेस्टइंडीज के खिलाफ एक मैच में 129 गेंदों पर 105 रन बनाए।
द्रविड़ की यह पारी परिस्थितियों के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण थी, लेकिन उनके धीमे स्ट्राइक रेट के कारण आलोचना भी हुई।
धीमी पारियों के अन्य उदाहरण
वनडे क्रिकेट के इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं, जब बल्लेबाजों ने बेहद धीमी पारियां खेलीं। इनमें से कुछ पारी परिस्थितियों के कारण धीमी थीं, जबकि कुछ बल्लेबाज अपनी शैली के कारण धीमे खेले। नीचे कुछ चर्चित उदाहरण दिए गए हैं:
1. स्टीव टिकल (न्यूजीलैंड):
1986 में भारत के खिलाफ खेले गए एक मैच में स्टीव टिकल ने 114 गेंदों पर केवल 53 रन बनाए। उनकी इस धीमी बल्लेबाजी को न्यूजीलैंड की हार के प्रमुख कारणों में गिना गया।
2. महेन्द्र सिंह धोनी (भारत):
2017 में वेस्टइंडीज के खिलाफ धोनी ने 114 गेंदों पर केवल 54 रन बनाए। धोनी की इस धीमी पारी को लेकर खूब चर्चा हुई, क्योंकि उनके आक्रामक खेल के लिए मशहूर होने के बावजूद यह पारी उनके करियर की सबसे धीमी पारियों में से एक थी।
3. डॉमिनिक कॉर्क (इंग्लैंड):
1999 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक मैच में कॉर्क ने 88 गेंदों पर केवल 16 रन बनाए। उनकी इस पारी को “वनडे क्रिकेट की सबसे खराब पारियों में से एक” माना गया।
धीमी बल्लेबाजी का प्रभाव
धीमी बल्लेबाजी का प्रभाव मैच के नतीजे पर पड़ता है। अगर टीम के बाकी बल्लेबाज तेज़ी से रन बना रहे हों, तो धीमी बल्लेबाजी को संतुलन के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन अगर पूरी टीम धीमे खेल रही हो, तो यह नुकसानदायक हो सकता है।
एकदिवसीय क्रिकेट में धीमी बल्लेबाजी दर्शकों के अनुभव को भी प्रभावित करती है। वनडे क्रिकेट को तेज़ और रोमांचक बनाने के लिए ही शुरू किया गया था।
ऐसे में धीमी बल्लेबाजी दर्शकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरती। हालांकि, जब यह रणनीति का हिस्सा होती है, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।
दुनिया के सबसे धीमे बल्लेबाजों और उनकी पारियों की चर्चा हमेशा क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक दिलचस्प विषय रही है। वनडे क्रिकेट में धीमी बल्लेबाजी का मतलब यह नहीं है कि बल्लेबाज कम कुशल है।
इसके पीछे परिस्थितियां और टीम की रणनीति होती है। जेफ्री बॉयकॉट, माजिद खान, और राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों ने यह साबित किया है कि कभी-कभी धीमी बल्लेबाजी भी टीम के लिए फायदेमंद हो सकती है।
आखिरकार, क्रिकेट एक ऐसा खेल है जो संतुलन, रणनीति और धैर्य का संगम है। चाहे बल्लेबाज तेज़ खेले या धीमा, उसका मुख्य उद्देश्य टीम के लिए योगदान देना होता है।
वनडे क्रिकेट में धीमी बल्लेबाजी के कुछ उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं, जो इस खेल की विविधता और चुनौतियों को दर्शाते हैं।